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कर्म ही धर्म है, यह विचार भारत की प्राचीन परंपरा और धर्मग्रंथों में गहराई से जड़ा हुआ है। इसका मतलब यह है कि इंसान के कर्म (यानी उनके द्वारा किए गए कार्य और आचरण) ही उनके धर्म का असली रूप हैं।इस सिद्धांत के अनुसार, किसी व्यक्ति का धर्म केवल धार्मिक अनुष्ठानों या पूजा-पाठ तक सीमित नहीं होता, बल्कि उनके द्वारा किए गए कार्यों में, उनके जीवन जीने के तरीके में और दूसरों के प्रति उनके व्यवहार में झलकता है।गीता में भगवान कृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि धर्म का पालन करने के लिए उन्हें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों। यह संदेश इस बात पर जोर देता है कि कर्म का सही और सच्चे मन से पालन करना ही धर्म का सही मार्ग है।
(ENGLISH)
“Karm is Dharm” translates to the idea that one’s actions (karm) are the true essence of their duty or righteousness (dharm). This concept is deeply rooted in ancient Indian philosophy and scriptures, suggesting that a person’s true religion or spiritual duty is reflected in their deeds and conduct.
According to this principle, dharm is not limited to religious rituals or worship, but is also embodied in the way a person lives their life, their actions, and their behavior towards others.
In the Bhagavad Gita, Lord Krishna tells Arjuna that upholding one’s duty, regardless of the circumstances, is the essence of dharma. This emphasizes that performing one’s duties with sincerity, integrity, and truthfulness is the true path of righteousness.
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